वक़्त बदले तो एहसास बदल जाते हैं.... जो अपने हों बहुत खास , बदल जाते हैं .... लोग दुनिया मे सभी ऐसे हैं, नई संगत हो तो जज़्बात बदल जाते हैं... दिल भी समझे तो फिर समझे कैसे? कि भला कैसे उन आँखों का मंजर बदला? ज़मी बदली और आसमाँ बदला , बचा बाक़ी था , समंदर बदला कभी मीठा था ,किसी दरिया सा आज पी लो तो ज़हर हो जाये कभी हर वक़्त की महफ़िल थी, मेरी ज़न्नत थी आज कह दूं तो क़हर हो जाये.. तसल्ली दिल को दिए जाते हैं लोग किस्सों में जब बताते हैं... किसी का कोई भरोसा ही नही.. वक़्त बदला तो फिर लोग बदल जाते हैं...
शुरुआती चार लांइन्स.... कुमार विश्वास जी की हैं, बहुत अच्छी लगी इसलिये उनको लेते हुए कुछ अपनी लांइन्स साथ मे जोड़ी हैं.... शुरुआती चार लांइन्स के बाद की लांइन्स पर आप मेरे लिए दाद दे सकते हैं ☺️ बहुत बिखरा बहुत टूटा, थपेड़े सह नहीं पाया हवाओं के इशारों पर मगर मैं बह नहीं पाया अधूरा अनसुना ही रह गया यूं प्यार का किस्सा कभी तुम सुन नहीं पायी, कभी मैं कह नहीं पाया -कुमार विश्वास जी तुम्हारे प्रश्न के उत्तर बहुत उलझे हुए धागे... सुलझ जाने की उलझन में... उलझते और जाते थे... बहुत से मोड़ भी आये... बहुत कुछ छोड़ भी आये.. कभी बारिश की तड़पन में... झुलसते और जाते थे.. कभी इक छोर को पकड़ा... तो दूजा छिप गया भीतर... कभी जब तोड़ के जोड़ा... तो गांठें आ गई ऊपर.... ज़मीनें दूर तक तो थीं... मगर फैला रहा बंजर... खुशी के बीज मुट्ठी में , मगर बढ़ता गया ऊसर... कि उलझन और सुलझन में.... कभी उलझा रहा ये मन... कभी मैं जग नही पाया.... कभी मैं सो नही पाया... तुम्हारे साथ की आदत... भले कड़वी थी,मीठी थी... तुम्हारे बाद मैं लेकिन , किसी का हो नही पाया... बहुत मज़बूत पत्थर सा... हज़ार